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राज्य में वनाग्नि से निपटने के लिए वनकर्मियों के पास जरूरी उपकरणों का अभाव

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देहरादून। उत्तराखंड में विभिन्न हिस्सों लगातार वनाग्नि की घटनाएं घट रही हैं। वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए वनकर्मियों के पास आधुनिक उपकरणों का अभाव बना हुआ है। आधुनिक उपकरणों के अभाव में वनकर्मियों को वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण पाने में खासा मशक्कत करनी पड़ रही है। आधुनिक उपकरणों के अभाव में वनकर्मी भी इसकी चपेट में आ जा रहे हैं। गत दिवस ही अल्मोड़ा जिले में वनाग्नि की चपेट में आने से चार वनकर्मियों की मौत हो गई, जबकि चार वनकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे पहले भी जंगल की आग बुझाने के दौरान कई बार वनकर्मी व स्थानीय लोग वनाग्नि की चपेट में आने से झुलस चुके हैं व कुछ की मौत भी हो चुकी है। उत्तराखंड जंगल बाहुल्य क्षेत्र है और यहां अक्सर वनाग्नि की घटनाएं घटती हैं, ऐसे में वनकर्मियों को वनाग्नि पर काबू पाने का विशेष प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें आधुनिक उपकरण भी महैया कराए जाने की जरूरत है। राज्य के वनों को बचाने के लिए वनकर्मियों के पास अपनी सुरक्षा से लेकर आग बुझाने के लिए ज़रूरी उपकरण ही नहीं हैं। उत्तराखंड में हर वर्ष वनाग्नि से जंगलों को भारी नुकसान पहुंचता है। बड़ी मात्रा मे

फ़ीनिक्स मार्केटसिटी, पुणे ने बेल्जियम के मशहूर आर्टिस्ट टॉमस डी ब्रुने के एक्सक्लूसिव स्प्रिंग डेकोर: पांडा वर्ल्ड को लॉन्च किया

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देहरादून: फ़ीनिक्स मार्केटसिटी पुणे को एक लाजवाब स्प्रिंग डेकोर इंस्टालेशन, "पांडा वर्ल्ड" के लॉन्च की घोषणा करते हुए गौरव का अनुभव हो रहा है, जिसे पूरी दुनिया में भरपूर तारीफ पाने वाले बेल्जियम के जाने-माने आर्टिस्ट, टॉमस डी ब्रुने ने तैयार किया है। यह आयोजन वाकई बेहद खास है जो भव्यता और वैभव का बेमिसाल अनुभव प्रदान करने का वादा करता है, क्योंकि यहाँ टॉमस डी ब्रुने का असाधारण कौशल और सीमाओं से परे उनकी कल्पना में मानो जान आ जाती है। पांडा वर्ल्ड इंस्टॉलेशन: पुणे के फ़ीनिक्स मार्केटसिटी में 'पांडा वर्ल्ड' इंस्टॉलेशन, सही मायने में टॉमस डी ब्रुने की पहचान बन चुके उनके अनोखे स्टाइल को दर्शाता है, जो बेमिसाल उपयोगिता और उम्दा कारीगरी के साथ अनदेखी रचनात्मकता का बेजोड़ संगम है। बड़े आकार के जादुई फ्लोरल इंस्टॉलेशन बनाने के लिए मशहूर, टॉमस डी ब्रुने ग्राहकों की पसंद और ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए हैरत में डाल देने वाले कलर पैलेट का उपयोग करते हैं, और यकीनन इस तरह उनकी हरेक डिज़ाइन एकदम अनोखी मास्टरपीस बन जाती है। कार्यक्रम का विवरण: 'पांडा वर्ल्ड' के लॉन्च का

भारत के पहले खगोल पर्यटन अभियान ‘‘नक्षत्र सभा’’ का उद्घाटन

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-एस्ट्रो टूरिज्म से प्रदेश में होगा बहुआयामी पर्यटन का विकासः मुख्यमंत्री -सरकार ग्रीन टूरिज्म को बढ़ावा देने के दृष्टिगत विभिन्न प्रयास कर रहीः मुख्यमंत्री देहरादून। उत्तराखण्ड में पर्यटन की अपार संभावनाओं के दृष्टिगत एस्ट्रो टूरिज्म को बढ़ावा दिये जाने के उद्देश्य से में पर्यटन विभाग द्वारा एस्ट्रो टूरिज्म कंपनी के सहयोग से ‘नक्षत्र सभा‘ का जॉर्ज एवरेस्ट मसूरी में विधिवत उद्घाटन हो गया है। यह अपने आप में अलग किस्म का आयोजन है, देश में पहली बार एस्ट्रो टूरिज्म की थीम पर “नक्षत्र सभा” आयोजन किया गया है। यह आयोजन 2 जून तक चलेगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन के अनुरूप प्रदेश में धार्मिक पर्यटन के अलावा बहुआयामी पर्यटन गतिविधियों बढ़ावा देने के दृष्टिगत पर्यटन विभाग ने यह पहल की है। मुख्यमंत्री श्री धामी ने पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित “नक्षत्र सभा” के सफल आयोजन के लिए शुभकामना दी हैं। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रदेश में बहुआयामी पर्यटन के दृष्टिगत सरकार अन्य संसाधन भी विकसित कर रही है। मुख्यमंत्री श्री धामी ने कहा कि सरकार ग्रीन टूरिज्म को बढ़ावा देने के दृष्टिगत विभिन्न प्रयास कर

उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाओं से नष्ट हो रही बेशकीमती वन संपदा

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देहरादून। उत्तराखंड में जंगलों में लगने वाली आग से बड़ी मात्रा में बेशकीमती वन संपदा नष्ट हो रही है। राज्य में हर वर्ष जंगलों में आग लगती है, लेकिन इससे निपटने के लिए सरकार द्वारा न कोई दीर्घकालिक योजना बनाई गई है और न ही कोई कारगर कदम ही उठाए जाते हैं। जंगलों में लगने वाली आग के प्रति वन विभाग अक्सर उदासीन ही बना रहता है। वनाग्नि की घटनाएं न हों इसके लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जाते हैं। ग्रामीणों को वनाग्नि के प्रति जागरूक करने की दिशा में भी कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं, जिस कारण ग्रामीण भी लापरवाह बने रहते हैं। उत्तराखण्ड में मुख्यतः चीड़ के वन ही जंगलों में आग की विभिषिका के लिए उत्तरदायी है। उत्तराखण्ड में समुद्र सतह से 300 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर पाये जाने वाले वनों में क्रमशः साल, चीड़ एवं बांज वनों में चीड़ के वनों का बाहुल्य है। स्थानीय निवासी चीड़ के वनों से जलावनी लकड़ी, पिरूल, फल-फूल एवं अन्य वन्य उत्पाद अपनी आजीविका हेतु इक्ट्ठा करते हैं। वन विभाग के लिए चीड़ के वृक्ष लीसा एवं ईमारती लकड़ी के रूप में एक मुख्य आय के स्रोत हैं। सालाना लगभग 70 से 80 हजार क्विंटल लीसा उत

निदेशक प्राविधिक शिक्षा को किस खास मकसद से दिया जा रहा सेवा विस्तारः मोर्चा

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विकासनगर। जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि प्रदेश में सेवा विस्तार दिए जाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ गया है, जिसका ताजा उदाहरण उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा विभाग के निदेशक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता हैं, जिनकी अधिवर्षिता आयु कल 31 मई को पूर्ण हो रही है। सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि श्री गुप्ता को सेवा विस्तार दिए जाने से संबंधित पत्रावली तेजी के साथ सचिवालय में व अन्य स्तर पर तेजी से दौड़ रही है, जोकि दूसरे पायदान पर खड़े अधिकारियों के हक पर डाका है। वर्ष 2015 से श्री गुप्ता ए.डी. का पद संभाल रहे हैं, इनके द्वारा विभाग को क्या खास योगदान दिया गया इसका भी खुलासा होना जरूरी है। हैरानी की बात यह है कि निदेशक को सरकार किस खास मकसद से सेवा विस्तार देना चाहती है ! क्या इसके पीछे कोई राज छिपा है। नेगी ने कहा कि निदेशक को सेवा विस्तार मिलने की वजह से कई अधिकारियों का हक मारा जाएगा एवं उनकी पदोन्नति पर भी प्रभाव पड़ेगा। उक्त मामले को लेकर अधिकारियों में भारी नाराजगी है। मोर्चा सरकार से मांग करता है कि सेवा विस्तार दिए जाने के मामले को समाप्त कर गुड गव

भारत का पहला हिंदी अखबार उदंत मार्तंड, इसी अखबार के साथ शुरु हुई थी देश में 30 मई 1826 को हिंदी पत्रकारिता

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देहरादून, गढ़ संवेदना। भारत में हिंदी पत्रकारिता का शुभारंभ उदंत मार्तंड अखबार के साथ हुआ था। हिंदी भाषा में उदन्त मार्तण्ड के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक श्उदन्त मार्तण्डश् का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था। परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं थ

आईआईएम काशीपुर में होगा उत्तर भारत का सबसे बड़ा स्कॉलर कॉन्क्लेव, देश के प्रीमियर इंस्टीट्यूट के शामिल होंगे 300 स्कॉलर

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देहरादून/काशीपुर। उत्तराखंड के इकलौते प्रतिष्ठित भारतीय प्रबंध संस्थान काशीपुर में तीन दिवसीय मैनेजमेंट एजुकेशन और रिसर्च (डम्त्ब्) कॉन्क्लेव का अयोजन होने जा रहा है। मई 31 से जून 2 तक होने वाले इस सेमिनार में देश के प्रीमियर इंस्टीट्यूट जैसे पांच आईआईटी, दस आईआईएम, एनआईटी, जेएनयू, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कॉलर (विद्वान) भाग लेंगे। लगभग एक माह तक चले इस ऑनलाइन नामांकन में 720 से ज्यादा स्कॉलरो ने आवेदन किए जिसमें 300 रिसर्च पेपर को शॉर्टलिस्ट किया गया। चैकाने वाली बात यह है कि इसमें 50-60 प्रतिशत आवेदक महिलाएं है। गौर करने वाली बात यह भी है कि पिछली बार के मुकाबले इस बार आवदेन में 400 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। जहा पिछली बार 300 से ज्यादा विद्वानों ने आवदेन किया था वही इस बार 720 आवदेन आए है। कॉन्क्लेव में डॉक्टरेट छात्रों और स्कॉलर के समक्ष अपने शोध प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण प्लेटफाॅर्म है। इस आयोजन के दौरान डॉक्टरेट छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों के अन्य विद्वानों के साथ संवाद करने, सहयोग करने और नेटवर्क बनाने के अवसर भी मिलत