स्वरोजगार अपनै तैं रोके जै सकदू पलायन

देहरादून, वीरेंद्र दत्त गैरोला। उत्तराखंड मां पलायन एक बड़ी समस्या छ। पलायन का कारण गौं का गौं खाली ह्वैगीन अर कई गौं खाली होणा का कगार पर पहुंची गैन। स्वरोजगार शुरु करी तैं हम पलायन तैं रोकी सकदन। बागवानी व सगंध खेती काफी लाभकारी साबित ह्वै सकदी। यख काष्ठ शिल्प तैं भी विकसित करण की जरूरत छ। उत्तराखंड मां विश्व प्रसिद्ध चार धाम छन। यों दिन चारधाम यात्रा चलणी छ, बड़ी संख्या मां तीर्थयात्री चारधाम यात्रा मां पहुंचणा छन। लकड़ी पर गंगोत्री, यमनोत्री, बद्रीनाथ अर केदारनाथ धाम की प्रतिकृतियांें तैं उकेरी तैं श्रद्धालुओं तैं बेचे जै सकदू। ये कि खातिर उद्यमियों तैं अगनै औंण पड़लू। स्थानीय स्तर पर रिंगाल अर बांस कू आकर्षक सामान बणैं तैं तीर्थयात्रियों तैं बेचे जै सकदू। आज जब प्लास्टिक पर्यावरण तैं बहुत नुकसान पहुंचैणू छ त वैकू विकल्प दिये जै सकदू। पहाड़ों मां पहली सी ही पत्तों सी बणी थालियांे व कटोरियों पर सामूहिक भोज करणू प्रचलित रही। आज भी अगर ये तैं आधुनिक तकनीक सी जोड़ दिए जौ त यू रोजगार की खातिर बहुत बड़ू अवसर बणी सकदू। पत्तल कू पूरा देश मां बड़ू बाजार छ। पहाड़ मां चीड़ की पत्तियां काफी मात्रा मां उपलब्ध छन, यों तैं भी रोजगार मां प्रयोग किये जै सकदू। पहाड़ों मां खेती मां जैविक खाद कू ही उपयोग होंद, प्रदेश का कृषि उत्पादों तैं जैविक खेती का नौ पर प्रचारित करी तैं अच्छा दामों मां बेचे जै सकदू। बांस की खेती तैं बड़ा स्तर पर अपनाए जै सकदू। जंगली जानवर बांस कू कुछ नी बिगाड़ी सकदन। बांस रोजगार की अनेक संभावनाओं तैं खोली सकदू। लघु उद्योग, शिल्प कला, मूर्ति कला, पर्यटन, जैविक खेती ही वू आधार छन जू कि उत्तराखंड मां पलायन तैं रोकी सकदन।

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