किसान विरोधी मोदी सरकार के खिलाफ उत्तराखण्ड में भी चलेगा व्यापक अभियान
-लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित बिल किसान विरोधीः प्रीतम सिंह
देहरादून। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने आज प्रदेश कांग्रेस कार्यालय, राजीव भवन देहरादून में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए लोकसभा एवं राज्यसभा में पारित बिलों को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि देश का किसान और खेत मजदूर सड़कों पर है और सत्ता के नशे में मदमस्त मोदी सरकार उनकी रोजी रोटी छीन खेत खलिहान को पूंजीपतियों के हवाले करने का षडयंत्र कर रही है। कृषि विरोधी तीन काले कानूनों ने समूची मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मुखौटे को उतार दिया है। असल में मोदी सरकार का मूलमंत्र है- किसानों को मात, पूंजीपतियों का साथ! खेत मजदूरों का शोषण, पूंजीपतियों का पोषण! गरीबों का दमन, पूंजीपतियों को नमन!
प्रीतम सिंह ने कहा कि आत्म निर्भर भारत अभियान की आढ में भारत की आत्मा को किस तरह मारा जा रहा है इसका ताजा उदाहरण है मोदी सरकार द्वारा लाये गये किसानों के तीन अध्यादेष, जिन्हें संसद के दोनों सदनों से किस तरह अलोकतांत्रिक तरीके से पास कराया गया, वो इतिहास के पन्नों में काले अध्याय की तरह लिखा जायेगा। जो तीन विधेयक सदन में परित किये गये हैं उनमें पहला कृशि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा विधेयक), दूसरा आवष्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संसोधन विधेयक एवं तीसरा मूल्य आष्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सषक्तीकरण) समझौता और कृशि सेवा विधेयक। ये तीनों ही विधेयक किसान की कमर तोडने के लिए काफी हैं।
उन्होंने कहा कि अभी हाल ही मे हमारी जी.डी.पी. -23.9 आंकी गई है और यदि कृशि क्षेत्र ने सहारा न दिया होता तो यह और नीचे गिर सकती थी। उत्तर प्रदेष, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेष, आंध्र प्रदेष, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटका सहित कई राज्यों के किसान गांवों, कस्बों, तहसीलों यहां तक कि जिला मुख्यालयों में भी लगातार विरोध-प्रदर्षन कर रहे हैं। यहां तक कि पंजाब, हरियाणा के किसानों के विरोध प्रदर्षन को रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया तथा निहत्थे और गांधीवादी तरीके से विरोध कर रहे किसानों पर किस प्रकार से पुलिस प्रषासन द्वारा लाठियां भांजी गई। उनके समर्थन में मोदी सरकार में केन्द्रीय खाद्यय एवं प्रसंस्करण मंत्री रही षिरोमणि अकाली दल की नेता श्रीमती हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया है। केन्द्र सरकार बहुमत के बलबूते पर लगातार मनमाने फैसले लेती आई है। जिसमें अब किसान भी षामिल हो गये हैं। कोरोना जैसी वैष्विक महामारी में जब देष की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह डांवाडोल है और जी.डी.पी. गोते लगा रही है तथा देष के करोड़ों प्रवासी मजदूर रोजगार छिन जाने की वजह से अपने गांव की तरफ रूख कर रहे हैं और वहीं गुजर-बसर करने के लिए खेती किसानी की तरफ रूझान दिखा रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार को अब किसानों की सुध आई है। अब मोदी सरकार को लगने लगा है कि देष कृशि क्षेत्र में उन्नति करेगा जब अपने गांव से पलायन कर गये लोग किसानी की तरफ रूचि दिखा रहे हैं तथा किसानों की जिन्दगी बदल देने तथा आय दुगनी करने के नाम पर तीन अध्यादेष लाई है। अध्यादेष पारित होने पर भाजपा सरकार द्वारा यह दलील दी जा रही है इससे एक देष एक कृशि बाजार बनाने में मदद मिलेगी और देष की खुषहाली के लिए लाया गया यह किसान अध्यादेष मील का पत्थर साबित होगा।
केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा पारित आवष्यक वस्तु अधिधिनियम -1955 में संषोधन बिल पर बोलते हुए श्री प्रीतम सिंह ने कहा कि इस अधिनियम के अन्तर्गत आवष्यक वस्तुएं जैसे अनाज, दालें, खाद्य्य तेल, आलू, प्याज आदि तमाम खाद्य्य पदार्थों को आवष्यक वस्तुओं की सूची में रखा गया था। इसके पीछे मंषा यह थी कि इन खाद्य्य पदार्थों की जमाखोरी एवं काला बाजारी को अपराध की श्रेणी में माना जाता था। कोई भी कृशि उपज को जरूरत से जादा जमा न करे और इनकी कालाबाजारी न करे इसलिए आवष्यक वस्तु अधिनियम-1955 बनाया गया था। इससे एक तरफ किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलता था और गरीब आदमी को भी सही कीमत पर अनाज, दाले, खाद्य्य तेल और सब्जियां बाजार में उपलब्ध हो जाया करती थी। बाजार में मंहगाई बढने के साथ ही इनकी कीमतों में भी वृद्धि होती थी लेकिन बडे कारोबारी इसकी जमाखोरी कर बढे हुए दामों में इसे बेचने का खेल नहीं खेल पाते थे। लेकिन बडे उद्योगपतियों का मुनाफा करवाने तथा आम गरीब आदमी को खून के आंसू रूलाने के लिए प्रतिबद्ध मोदी सरकार ने अब इस खेल की षुरूआत करते हुए आवष्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संषोधन कर दिया है।